भारतीय सिनेमा का इतिहास 100 वर्ष पूर्ण कर चुका है तो छत्तीसगढ़ी सिनेमा ने भी 50 वर्ष पार कर लिया है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है







उपलब्धियों से भरा है छत्तीसगढ़ी सिनेमा का सफर







 

 





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Cinema Chhallywood


 

रायपुर। भारतीय सिनेमा का इतिहास 100 वर्ष पूर्ण कर चुका है तो छत्तीसगढ़ी सिनेमा ने भी 50 वर्ष पार कर लिया है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। लेकिन छत्तीसगढ़ी फिल्मों पर हमेशा बॉलीवुड की नकल करने का आरोप लगता रहता है। बच्चे अपने से बड़ों को ही तो देखकर पहले सीखते हैं, बाद में उनका अपना अलग व्यक्तित्व का विकास हो जाता है। अगर छत्तीसगढ़ी फिल्मों ने कहीं से कोई अच्छी बात सीख ली तो इसमें मुझे कोई दोष नजर नहीं आता। क्या हॉलीवुड की और दक्षिण भारतीय फिल्मों की नकल नहीं करता बॉलीवुड? तकनीक और विषयों का आदान-प्रदान क्या बाकी के क्षेत्रों में नहीं होता ? होता है। यह कहना अधिक उचित होगा की तकनीक और विषयों का आदान-प्रदान विभिन्ना फिल्म इंडस्ट्री में जरूरी है।


कई फिल्मों ने मनाई सिल्वर जुबली


कई छत्तीसगढ़ी फिल्मों ने सिल्वर जुबली बनाई। मोर छंइहा भुईयां, मया दे दे मया ले ले, झन भूलव मां-बाप ला और मया सिल्वर जुबली के मुकाम तक पहुंचीं। 100 दिनों तक प्रदर्शित होने वाली फिल्मों में परदेसी के मया, तोर मया के मारे, टूरा रिक्शा वाला और लैला टिप टाप छैला अंगूठा छाप शामिल हैं। मयारू भौजी, रघुबीर, तीजा के लुगरा, भांवर, मया दे दे मयारू, महूं दीवाना तहूं दीवानी और राजा छत्तीसगढ़िया फिल्में सिनेमाघरों में सफलता पूर्वक 50 से अधिक दिनों तक प्रदर्शित हुईं।


सप्ताहभर 8 खेलों में प्रदर्शन का देश में बनाया रिकॉर्ड


मोर छंइहा भुईयां ने 109 दिनों तक लगातार 5 शो प्रतिदिन एक सिनेमाघर में प्रदर्शित होकर 27 हफ्ते तक चलने का रिकॉर्ड बनाया था। इस फिल्म ने एक सप्ताह तक राजिम और नयापारा में रोज 8 खेलों में प्रदर्शन का पूरे देश में अनूठा कीर्तिमान बनाया था। मशहूर फिल्म निर्देशक सतीश कौशिक ने फिल्म मोर छंइहा भुईयां और झन भूलव मां-बाप ला के अधिकार हरियाणवी फिल्म बनाने के लिए खरीदे हैं। हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध निर्देशक सूरज बड़जात्या ने मोर छंइहा भुईयां देखकर फिल्म के निर्देशक सतीश जैन को हिंदी फिल्म बनाने का प्रस्ताव दिया था।


भोजपुरी इंडस्ट्री को उबारा लैला टिप टाप छैला अंगूठा छाप ने


अपने खराब दौर से गुजर रही भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को छत्तीसगढ़ी फिल्म लैला टिप टाप छैला अंगूठा छाप के री-मेक ने फिर से उबार दिया। छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्देशक सतीश जैन को लगातार दो बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का भोजपुरी फिल्मों के लिए सम्मान मिला। मया का री-मेक राम लखन और झन भूलव मां-बाप ला की कहानी पर दिलवाला फिल्म का निर्माण भोजपुरी में हो चुका है और कुछ फिल्मों के री-मेक की तैयारी भी है। बहुत सी छत्तीसगढ़ी फिल्मों को विभिन्ना भाषाओं में डबिंग कर अलग-अलग प्रदेशों में रिलीज किया गया है। वैसे ही दूसरी भाषाओं की फिल्में भी छत्तीसगढ़ी में प्रदर्शित हुई हैं।


छत्तीसगढ़ी सिनेमा में पहले हुआ गानों की शूटिंग में मोबाइल फोन का प्रयोग


छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों और रचनाकारों की बहुत सी कृतियां छत्तीसगढ़ी फिल्मों का हिस्सा हैं। इनका असर न सिर्फ छत्तीसगढ़ वरन बाहर के लोगों पर भी हुआ। एच.डी.वी. फॉर्मेट में फिल्म निर्माण कर सिनेमाघरों में प्रदर्शित करना छत्तीसगढ़िया लोगों का ही कमाल है। गानों की शूटिंग में स्पूल (नागरा) के स्थान पर मोबाइल फोन का प्रयोग संभवतः छॉलीवुड में ही सबसे पहले शुरू हुआ। छत्तीसगढ़ी फिल्मों से भी बहुतों ने प्रेरणा ली है, बहुत कुछ सिखाया है औरों को छॉलीवुड ने। सीमित साधनों और कम बजट में शानदार फिल्म निर्माण करने की अद्भुत प्रतिभा के लिए छत्तीसगढ़ी फिल्म बिरादरी की चहुं ओर प्रशंसा की जाती है।


दादा साहब फाल्के और पद्मश्री से नवाजे गए


छत्तीसगढ़ के मुंगेली के वल्लम भाई सोलंकी (2009) और रायपुर के ललित तिवारी (2013) जैसे सिनेमाघर संचालकों को उनके योगदान के लिए प्रतिष्ठित सम्मान दादा साहब फाल्के से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2014 में भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ी फिल्मों के अभिनेता अनुज शर्मा को पदश्री्‌ से सम्मानित किया। सुप्रसिद्ध लोक गायिका और छत्तीसगढ़ी फिल्मों की पार्श्व गायिका ममता चंद्राकर को भी इसी वर्ष पद्मश्री से सम्मानित किया गया। पद्म भूषण से अलंकृत तीजन बाई ने भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों में अभिनय किया है। पद्मश्री से सम्मानित भारती बंधु ने भी कुछ फिल्मों में अपनी आवाज दी है। बॉलीवुड के भी बहुत से नामी-गिरामी कलाकारों ने छॉलीवुड में अपना योगदान दिया है। छत्तीसगढ़ी फिल्म बिरादरी में एक अद्भुत जीवटता देखने को मिलती है, जो विपरीत परिस्थितियों में लड़खड़ाती है, गिरती है, लेकिन फिर उठ खड़ी होती है। लाजवाब है छॉलीवुड का जज्बा।


(छालीवुड के सफर की आठवीं किस्त पद्मश्री अनुज शर्मा की कलम से)